आज पूरा दिन मैंने बचपन की यादों में गुज़ार दिया । वो बचपन, जब हफ़्ते पहले से रोमांच बढ़ जाता था की १५ अगस्त या २६ जनवरी आने वाली है । मक़सद सुभह माँ जब हर दिन की तरह जल्दी उठाएगी तो माँ की वो मुस्कान हमारा भी मन मोह लेगी, वो उस दिन सफ़ेद साड़ी लाल बॉर्डर में भारत माता ही लगतीं थी , उठाती और कहती जो सोएगा वो खोएगा। जल्दी उठो परेड आने वाली है , उससे पहले ध्वजारोहण भी करना है , हम सुनके ही बैठ जाते , फिर कहीं भाई पहले जाकर दीवार के पास वाली सीट ना ले ले इसलिए मैं पहले तैय्यार होकर हॉल में पहुँच जाती । पर भाई तो होशियार था वो मुझसे पहले ही छत पर पहुँच जाता ध्वजारोहण के लिए और मामा के बग़ल में खड़ा मिलता । मुझे सब बुलाते ,और मैं मुँह फुला कर जाती तो , पर मन ही मन ये सोचकर कि नीचे फिर से वो सीट रोकनी है ताकि TV सेट के पास लगभग डेढ़ घंटे बेठना है साफ़ और आरामदायक सीट मिल ही जाए , ख़ैर तभी छत पर देशभक्ति गीत बजा दिए जाते और ध्वजा को तैय्यार कर लिया जाता , ख़ूबसूरत गुलाब की पंखुड़ियाँ जो माँ की बगिया से तोड़ी थी महक रहीहोती ध्वजा से। वैसे माँ हमें हाथ ना लगाने देतीं अपने फूलों को , बस भगवान के मंदिर में और राष्ट्रीय ध्वज में , इसके अतिरिक्त सभी के जन्मदिन वाले दिन माँ अपने बगिया के फूल से सुबह सुबह मुबारकबाद देतीं। ख़ैर, अब हमारे मामाजी जो हमारे आदरणीय हैं जोश और देश भक्ति से ओतप्रोत राष्ट्रीय गीत व राष्ट्रीय गान गाने के लिए तैय्यार हो पापा से ध्वजारोहण करने को कहते , हम जो भी हैं वह संजू मामा के वजह से ही हैं । उन्होंने हमें जीवन के रिश्तों और सभी चीज़ों को मूल्य कैसे करें सिखाया है ।
बस लड़ झगड़कर बैठ जाते अपनी अपनी जगह , और पिन ड्रॉप साइलेन्स में सब झाँकियों का आनन्द उठाते ।
अपने अपने राज्यों की झाँकी आने पर ख़ुश हो जाते । तब हमारी छोटी बहन ननिहाल रहती थी , तो राजस्थान की झाँकी आने पर हमसे कहा जाता देखो कहीं रिद्धि दखेगी और हम मासूम सच मानकर ढूँढा करते, वो बचपन मासूम था क्यूँकि आजके बच्चे सब जानते हैं वो कहाँ मान वाले हैं ? वो तो हमें ही मूर्ख बना दे 🙂 । झाँकिया ख़त्म होते होते तक रसोई से कूकर की सीटी बजने के साथ दूर दूर तक लापसी की महक और पकोड़ों की सुगंध पेट में चूहे दौड़ाने लगते बस प्रतीक्षा होती की भगवान के भोग की टाली बजे और माँ की आवाज़ आए….
दिन आज भी वही है पर आज माँ मैं हूँ , और हमारी जगह मेरी बिटिया कुहू है , सुबह छः (६ ) की बजाए ८:३० साढे आठ बजे थे , और मैं बार बार कह रही थी उठ जाओ झाँकियाँ आने वाली है और वो अंगड़ाई तोड़के करवट बदल लेती मम्मा सोने दो ना आज तो छुट्टी है , तभी बाहर खिड़की से जोर से आवाज़ें आयी क्या यार पापा आज एक ही दिन तो है चलो ना क्रिकेट खेलें पड़ोसियों के बच्चे थे शायद , की तभी देखा कुहु उठ खड़ी हुई और पास आकर कहने लगी देखो कोई नहीं देख रहा परेड उसने कहा और मैंने आँख निकालते हुए कहा हम देखेंगे हम हमेशा से देखते हैं थोड़े आनाकनी के बाद वह मान गयी और भागी हॉल में , आज लड्डू मिलेगा ? पूछकर बैठ गयी , मैंने जवाब दिया हाँ वह मुस्कुरायी और बोली और लंच में क्या स्पेशल बनेगा ?
तभी उसने दादू और माँ को भी बुला लिया और राष्ट्रीय गान के लिए सभी को खड़ा कर लिया ।
फिर झाँकिया जितनी देर चली उसके सवाल ख़त्म होने का नाम ना ले रहे थे , अब बारी थी लंच कि तो मैंने उसी उत्साह के साथ सरसों का साग , मक्काई की रोटी , लहसुन की चटनी , टमाटर की चटनी और सलाद बनाया , फिर लहसुन की चटनी कि अलावा सभी भोज का भोग लगाकर सभी को प्रसाद परोसा क्यूँकि हम वैष्णव हैं प्याज़ लहसुन खाना मना है पर बच्चों को अलाउड है अलग बर्तन में बनाना और खिलाना 🙂 … आप सोच रहे होंगे की मैं यह क्यूँ बता रही हूँ ? देखिए जब हम यह कहते हैं आजके बच्चे नहीं करते तो ग़लती कहीं हमारी भी है , परंपरायें पहले हम तोड़ते हैं फिर वो । हम अगर परम्पराओं का पालन करते रहें तो वो भी करेंगे ।
कुहू की नज़र पहले बूंदी के लड्डू पे थी फिर उसने भोजन किया .. उत्साह में कहीं कमी ना आयी थोड़े आराम के बाद फिर भारत इंगलैंड का मैच देखने बेठे सभी कोई , और में लग गई शाम के कार्यक्रम के लिए अब बात फिर वही थी क्या बनाया जाए तो माँ के वो पकोड़ियाँ याद आयीं , और दाल बड़ों का बरसते मौसम में आनंद उठाने के लिए मैं रसोई में लगी और बाक़ी सब अब भी मैच देख रहे थे ।
वहीं ठाकुरजी (कान्हा) ठण्ड में बेठे बेठे गरम गरम खिचड़ी खाने की विचार रहे थे , सो मेरे मन में भाव प्रकट कर दिया, और मैंने भी हामी भर कढ़ी खिचड़ी जो हमारे राजस्थान का पारम्परिक भोजन है बना लिया । देखा तो दोनो ही समय के भोजन तिरंगे के रंगों से ओतप्रोत थे ।
आज का शुभ दिन अब आप लोगों के साथ बाँट कर समापन की ओर है , हमारे ठाकुरजी पूरे उत्साह के साथ आज तिरंगे के शृंगार में नज़र आए और भोज में तीनो समय का भोग अपने आप ही तिरंगा करवा लिया ।
कल की सुबह नए आयाम लेकर आएगा। कल फिर से किसी न किसी प्रयोजन का आग़ाज़ हो ही जाएगा । इसी आशा के साथ शुभरात्रि । 😴😴😴 गणतंत्र दिवस आपने भी हमारी तरह कुछ अलग अन्दाज़ में मनाया होगा आशा करती हूँ ।
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