कुछ दोस्तों के पोस्ट पढ़कर जो मुझे आज एहसास हुआ कि लोग अपनी ही सोच से लोगों के खुदगर्ज बर्ताव से व्यथित हैं,
उनके भावों में रोष है कष्ट है पर कहीं वापिस खड़े होकर चल पड़ने को तैयार है।
मेरा मन व्यथित हुआ फिर सोचा नया क्या है , कभी मैं कभी कोई और सब के सब तो इन विचारों से ओत प्रोत होते हैं अगर कोई बचा सकता है तो वह ईश्वर जिनके शरणागति होकर हम भंवर से निकल सकते हैं । उन्हीं भावों को चार पंक्तियों में पिरोया है , आशा है मैं उस दर्द की अभिव्यक्ति में सफल हुई हूँ ।
आज आखिरी होगा , सब आखिरी ..
जो खबर है मुझे , मेरे नाथ ,नाद शक्ति मेरी बंद कर दो,
डर है कि कष्टों के भंवर में फंस जायेगा कोई ।
वो खेल यूँ ही भावनाओं से खेलेगा ,
मुझे सबल करो,बचा सकूँ ,
लूटके उसे ले जायेगा कोई ।
चाहके भी रोष से मेरे बच न पायेगा,
फिर चाहे सामने वो हो, या और कोई ।
बहुत भागी हूँ, अब और चला नहीं जायेगा,
मैं थक गई,और नहीं ,चाहे भागे और कोई ।
पेट है या तंबूरा ,जो भर नहीं पायेगा,
निष्काम प्रेम मेरा ,यहाँ नहीं समझ पायेगा कोई ।
मैं तेरे शरनागत अब चाहे वो रूठे या और कोई ।। .. ” निवेदिता “
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