मानवता कहाँ धूमिल भयी ,
लुप्त हुए धर्म संस्कार ;
उदारता का विलोप हुआ,
हुआ हावी अत्याचार ….
अपनी माँ को पूज रहा ,
बनाकर उसे महान ;
निज स्त्री को पीटा ,
बनकर स्वयं हैवान ;
धिक्कार ऐसी माँ को
जो ऐसा पूत जना ,
शय देती शैतान को
जो इंसान से हैवान बना।। ” Nivedita ”
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