कल मैंने ऐक मोटीवेशन प्रोग्राम का विडियो देखा शायद लाखों लोग देखते होंगे तो क्या लाखों लोग अपना जीवन बदल पाते हैं नहीं ना ? क्यों ? सब ऐक ही बात सुनते हैं पर कुछ लोग ही अपने जीवन में परिवर्तन लाने में सफल हो पाते हैं ? यही समझने की बात है । किसी भी ज्ञान को सुनने या देखने से कुछ फर्क नहीं पड़ता जब तक हम इसे अपने जीवन और आचरण में नहीं उतारते हैं इसे यों समझे धार्मिक ग्रंथों को अपने घर में जगह देने से हमारे स्वभाव में परिवर्तन नहीं आएगा उसमें लिखीं बातों को जीवन में उतारने और अपनाने से ही हम में परिवर्तन दिखाई देगा । कहते हैं नर में ही नारायण होता है इस लिए हमारे प्रारब्धों वश भगवान किसी ना किसी रूप में हमारे पास आकर हमें प्रेरणा देता है और हम ऐक कान से सुन कर दुसरे कान से बाहर निकाल देते हैं या यह कहुं की हमारे वर्तमान कर्मों के प्रारब्ध हमें उसकी बात मानने नहीं देते या हम आलस्य के वश में अपने Comfort Zone से बाहर निकलना ही नहीं चाहते नतीजा हम उस भले मानस की बातों को सुना अनसुनी कर देते हैं और समय निकल जाने के बाद सिवाय पछतावे के हमारे हाथों में कुछ नहीं होता है ।
मुझे अपने पहले मोटीवेशनर की बातें याद हो आई आजिये आपको अपने जीवन का एक वाकिया सुनाती हूं | एक बार मुझे मेरे चाचा ने समझाया कि देख अभी तुम्हारे कोई खर्चें नहीं है जब तुम कमाई करने की शुरुआत करोगी तो अपनी पांच सात सालों की नोकरी की कमाई को इकट्ठा करना और फिर किसी अच्छी कंपनी में नोकरी कर लेना तपांच सात साल जो सेविंग के पैसौ होंगे उनका ब्याज मिल जाएगा और जीवन बड़े आराम से कटेगा ।
ऐक दर्ष्टी कोण से उन्होंने मुझे सेविंग के लिए मोटीवेट किया और मैंने जब पढ़ाई-लिखाई के बाद अपनी दुसरी पारी की शुरुआत की तो मेने अपने पहले मोटीवेशनर की बातों का ध्यान रखा मेने स्वयं को कभी भी Comfort Zone में नहीं रखा मैंने जम कर मेहनत की और जैसी भी व्यवस्था थी, जैसी भी सिचुएशन मिली मैने उसे अपनों के साथ और सादा जीवन उच्च विचारों के बदोलत में अपने जीवन से खुश हूं ।
कहने का तात्पर्य केवल यह है कि मोटीवेशन प्रोग्राम देखने और सुनने से कुछ नहीं होगा जब तक हम अपना Comfort Zone त्याग कर इसे अपने जीवन में नहीं उतारते हैं तब तक हम इसके फायदों से लाभान्वित नहीं हो पाएंगे । बाकी आप स्वयं समझदार हो । आप का दिन मंगलमय हो ।
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