नन्हीं सी आशाऐं मेरी,
नन्ही सी मेरी चाहत हैं।

न रूठने का कारण कोई,
पर हंसने के बहाने अंनत हैं।
न उठने की जल्दी कोई,
न दफ्तर जाने की जल्दी है।
दीदी असली बन कर घूमूं,
लेकिन छोटा भाई नकली है ।

अंक गणित के तारों में देखूं,
लेकिन सपनों में चंदा मामा हैं।
दादी के किस्से कहानियों में
परीलोक की स्वप्निल परियां हैं|
खिलौनों का ये अंबार लगा है
मेरी खुशियों का यह खजाना है।

नन्हा सा यह बचपन मेरा नित
नव भविष्य का स्वप्न संजोता है।
©ज्योत्स्ना “निवेदिता”
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