वो बोली अब उठ जाओ
क्या माँ आज तो रविवार है छुट्टी है सोने दो न, माँ मुस्कुराई और कहा सो जा लेकिन थोड़ी देर फिर उठना होगा देख तेरी चींचीं सुबह से पांच बार आ गई है दाना नहीं देना क्या आज उसे?
मीनू चिढ़ कर बोली चींचीं को बोलो आज छुट्टी है माँ से ही ले ले दाना और मुंह ढांप कर सो गई।
थोड़ी ही देर में दादी भी बड़बड़ाने लगी थी आज नाशता न मिलेगा क्या, दवा का समय हो गया है आज कहाँ मर गए सारे?
दादाजी की आवाज़ सुनाई पड़ी अरे आज दूध भी न मिला मेरे नंदलाल को, असल में दादाजी नाम नंदलाल का करते थे बीच में खुद ही गटक जाते थे उनका नाम भी तो गोपाल जो था। माँ भी जानती थी इसलिए हमेशा पतीले में ज़्यादा देती थी।
तभी मोनू की भी रोने की आवाज़ आयी मुझे जाना है बाहर गौरिया को रोटी खिलाने और वो पैर पछाड़ कर धरती पर लौट रहा था, माँ हमेशा ही चार रोटी गौ के लिए रखती थी और मीनू ने ही उसका नाम गौरिया रखा था और मां कभी देर न करती थी आज क्या हुआ सोच मीनू घबराई और भागी माँ- माँ रसोई में ढूंढ कर आई थी न आँगन में थी अब मीनू छत पर भागी वहां का हाल देख तो उसके पाँव फूल गये थे..
रात को बारिश के कारण नाली में कचरा फंसा था और पूरी छत तालाब में बदल गई थी। पक्षियों का दाना भीग गया था और दूर धान वाली हांडी मे वो नन्ही चींचीं डूब रही थी शायद धान के लालच में झुकी होगी, चींचीं की यह दशा देख मीनू घबरा कर भागी और उसे अपने छाती से लगाते हुए भागी। माँ माँ पुकारते हुए कमरे में गयी वही एक जगह बची थी जहां उसने न खोजा था माँ को और बिस्तर पर माँ को लेटा हुआ देख और घबराई और बोली माँ क्या हुआ तुम्हे? माँ मुड़ी देखा और बोली क्या हुआ कुछ भी तो नहीँ क्यों ? मीनू फफक पड़ी तो सोई क्यों हो देखो न दादी को दवा लेनी है,
दादाजी को पूजा करनी है,
मोनू रो रहा है,
गौरिया भूखी है,
और चींचीं कहकर सिसक पड़ी…
तो माँ ने मीनू की और देखते हुए कहा सोने दे ना आज रविवार है छुट्टी है।…
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यह सुनते ही मानो मीनू सन्न थी उसको समझ आगया था और पसीने पसीने हो गई।
तभी पँखा चालू होने का एहसास हुआ और ठंडी हवा के साथ एक गर्म स्पर्श का भी एहसास हुआ और मीनू की आंख खुली सामने माँ को पाया वो किसी देवी से कम न लग रही थी अब मीनू समझ आया कि यह तो स्वप्न था लेकिन जो स्वप्न सिखा गया वो उसने जागते हुए भी न जाना था। स्वप्न उसे असल जिंदगी में जगा गया और मीनू माँ के लिपट कर बोली माँ तुम कभी छुट्टी न लेना और अबसे में भी जल्दी उठा करुँगी। माँ विस्मित मीनू की ओर देखती रही कुछ समझ आता उससे पहले मीनू उठ गई।
मन ही मन सोचने लगी अगर माँ भी छुट्टी मनाये तो कैसे सारा घर ही रुक जाएगा.. दरर्सल सब की छुट्टी हो जाएगी… ऐसा सोच वह मन ही मन मुस्कुराई और भागी छत की ओर चींचीं को दाना देने के लिए । “निवेदिता”
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