“समय समय की बात है ”
“चारु चंद्र को चंचल किरणें”
वे पढ़ते थे जब वे बच्चे थे, हमने भी पढ़ी आज भी पढ़ते होंगे, समय बस इतना बदला है कि साइकल ने हमारे समय में लूना ने ली और आज बाइक्स ने ले ली । लड़ते हुए बच्चे अब भी हैं, चंद्र वही, चंचलता वही, मौन वही बस हम और हमारा आज अलग ..
P.S.: “अपनी बात” पुस्तक “मौन मुस्कान की मार” लेखक श्री “आशुतोष राणा” से प्रेरित मेरे अपने विचार, निवेदित “निवेदिता”
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