सुनो जो तुम हो वो “मैं” में जीते आए हो,
और “मैं” “ज़हीन” ही सही,पर “हम” में ही यहीं “कहीं”,
ढूँढोगे तो पाओगे “मैं”को “हम” में यहीं कहीं ..
कितने ओछे हो क़द में, चाहे पद में ऊँचे खड़े कहीं
“हम” विलीन हुए “तुम” में “मैं” “तुम” जानो क्या कहीं ?
बस “तुम” जीते रहना “मुझमे”
या कहना ”हमने” किया “तुम्हें” याद कभी.. #निवेदिता
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