आज “आज़ादी” के मायने को बदलते देख मेरा मन व्यथित हो गया , जो हमने पढ़ी और जो “आज़ादी” आज के नए नापाक इरादों से लेस देश को टुकड़ों में बाँटने पे लगीं हैं उन लोगों से मेरा यह क्रोधित कवि हृदय जो कहना चाह रहा है उसे पढ़ें ,अच्छा लगे तो जवाब ज़रूर दें। देश को सही दिशा में लेजाने का समय आज है अगर हर कोई यूँ ही मुँह उठाए “आज़ादी” चिल्लाने लगेगा तो कैसे होगा।
“आज़ादी” के दीवाने थे वो ,
जिन्हें नमन किए जाते हैं ,
“सिंह”सी दहाड़ लगाते थे,
ना गोली से कतराते थे,
देश की आन बचाने को,
कभी पीठ नहीं दिखाते थे,
हँस हँस कर फाँसी पे चढ़े,
“माइँ रंग दे बसंती ” गाते थे,
शुक्र है !जो वो आज रहे नहीं,
नहीं ,आज सहन कर पाते थे,
ये “आज़ादी” के “शूकर” हैं,
दुनिया से भगाए जाते है,
रंग “हरे” उस दुश्मन की,
ओढ़ ओढ़ चिल्लाते हैं,
नमक देश का खाते हैं,
राग दुश्मन का गाते हैं
चलो,
अब इन “आस्तीन के सांपो को”,
बाज़ुओं की हिम्मत दिखाते हैं ,
फेंको- फेंको चिल्ला रहे,
आओ इन्हें फेंक आते हैं ।। #निवेदिता #Nivedita
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