पूछती हूँ ख़ुद से हर बार – सब से बार बार ,
प्रेम में नफ़रत नफ़रत से प्रेम ,क्यूँ है इतनी असरदार ?
ऐसा क्यों लगता है कि नफरत इतनी बड़ी है?
प्रेम से बढ़कर नफरत बहुत मजबूती से खड़ी है ।
कुछ भी समान नहीं हो सकता है जो कि सच्चा है,
नफरत का भार सहने को मेरा हृदय अभी बच्चा है ,
ऐसा लगता है कि प्यार हवा की तुलना में हल्का है,
नफरत के खाते में नज़र डालें बस आँखों से छलका है।
प्यार वाहक को उसके मान को मजबूत करता है ,
इसलिए किसी को अपना वजन नहीं लगता है ,
आप जल्द ही सीखते हैं कि प्यार का घनत्व कितना है,
जबकि बड़े पैमाने पर नफरत का ढेर तराज़ू पे लगता है ।
आप समझते ही नहीं कि प्रेम धीरज है , दयालु है,
मक्खन है , खोखला नहीं , कठोर नहीं नर्म है
क्यूँ अपने आप को नहीं टटोलते ?क्यूँ नहीं ढूँढते है,
क्रोध और नफ़रत में डूबे बस बुराई ही सोचते है। “निवेदिता”
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