सर्द सुबह थी,
हाथ बर्फ़ीले,
नर्म स्पर्श से,
उसके हाथ गर्म हुए,
और मेरी चाय .. “केसरिया “
प्याला एक, हम दो
एहसास एक,हम दो
कब दो एक हो गए,
और प्यार अमृतुल्य हो गया,
और मेरी “चाय “ .. केसरिया
उबलते पानी में,
पत्ती का घुलना,
अदरख के संग,
इलायची का मिलना,
दूध के संगम से,
मेरी चाय .. केसरिया
दो घूँट ज़िंदगी के,
जो उसके होठोंसे,
मिले तो उसके होंठ ,
लाल से सुर्ख़ लाल हुए ,
और मेरी चाय .. और “केसरिया”..(c)निवेदिता
Leave a comment