केसरिया

सर्द सुबह थी,

हाथ बर्फ़ीले,

नर्म स्पर्श से,

उसके हाथ गर्म हुए,

और मेरी चाय .. “केसरिया “

प्याला एक, हम दो

एहसास एक,हम दो

कब दो एक हो गए,

और प्यार अमृतुल्य हो गया,

और मेरी “चाय “ .. केसरिया

उबलते पानी में,

पत्ती का घुलना,

अदरख के संग,

इलायची का मिलना,

दूध के संगम से,

मेरी चाय .. केसरिया

दो घूँट ज़िंदगी के,

जो उसके होठोंसे,

मिले तो उसके होंठ ,

लाल से सुर्ख़ लाल हुए ,

और मेरी चाय .. और “केसरिया”..(c)निवेदिता

16 responses to “केसरिया”

  1. ताज़गी भर गई ज़हन में आपकी चाय से।

    Like

  2. Sensual

    Like

      1. Ji…Bohot…

        Liked by 1 person

          1. 😊😊😊

            Like

  3. Wahhh… Ye chai bhi khoob thi

    Liked by 1 person

    1. 😊😊😊☕️☕️

      Like

  4. कहां से ऐसे सुंदर खयाल वाती हो. बहुत अच्छा लगा.

    Liked by 1 person

    1. सादर आभार आपका 🙏🙏

      Like

  5. you write so different nd beautiful

    Like

  6. कम्माल का कविता है……
    लाजवाब वणॆन किया है आपने…

    Liked by 1 person

  7. Kya chay hai apki….
    bhut khub

    Liked by 2 people

  8. और मेरी “चाय “ .. केसरिया…..laajwab rachnaa…..khubsurat.

    Liked by 2 people

Leave a comment