रावण नाम सुनते ही मन में एक बुराई की , असत्य की , पापी की छवि याद आजाती है ,और दशहरे पर प्रभु श्री राम का रावण को मारकर तम पर , पाप पर , असत्य पर विजय पाने की वह अजेय , अभेद्य बाण चलाते हुई छवि याद आजाती है।
परंतु आज के परिवेश में सोचने पे मजबूर हो गई हूँ कहीं यह सब मिथ्या तो नहीं ? आज बात बात में अनायास मुँह से निकला वह मरा कहाँ ? वह तो सभी के मनों पर राज कर रहा है ।
क्या रावण की कपाल क्रिया हुई थी ? या नहीं ?
“कहीं उसके दस सर सहस्र सर बनकर हमारे मस्तिष्क के किसी कोने में तो नहीं बस गए ? “
विवेक व संयम का गहना त्याग अविवेकता और अहम का पर्चा लहरा रहे हैं ।
अपने मस्तिष्क पर ज़ोर डालें तो पिछले कुछ दिनो के घटनाक्रम में तो यह भी पाया कि श्री राम से बदला लेने के लिए हर उस व्यक्ति पर राज़ करने लगता है जिसका नाम में ही राम हो ।
संतों का राम निकल गया जिनके नाम में राम थे आशारम , राम वृक्ष , राम पाल और अब यह राम रहीम , अब किस किस राम का राम निकलने वाला है ऐसा सोचकर ही रोयें खड़े हो जाते हैं । जो हमें भगवान का मार्ग दिखने चाहिए वे स्वयंभू भगवान बन बैठे हैं ।
हालत तो ऐसी भायी ,ज्यों बड़ा त्यों घाघ,
अन्दर से गीदड़ भये , ओढ़े चोला बाघ ॥
दुनिया देखो अंधी भयी ,पकड़न जिनके पग ,
ओछी उतनी सोच हुई , जितना ऊँचा पद ॥
नाम के राम भए , रावण के करते काम ,
मुँह में राम बग़ल में छुरी करते सब आराम ।।
गुरु हुआ अर्थहीन , मगन भाए मोह मद काम
रामपाल हो या राम वृक्ष ; राम- रहीम या आसाराम ।।
… ” निवेदिता ”
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