ज्ञान की परिभाषा क्या है ? क्या मात्र डिग्री होना या पढ़ा लिखा होना है ? क्यूँकि ज्ञान तो सभी के पास है , ज़िंदगी जीने जितना ज्ञान तो प्रभु ने पशु को भी दिया है ।
किसी भी व्यक्ति के ज्ञानी होने की पहचान मात्र उसके ज्ञान उपार्जन से नहीं लगाया जा सकता , देखना यह चाहिए कि वह व्यक्ति अपने ज्ञान को जन हित में या समाज हित में किस प्रकार उपयोग में ला रहा है ।
ज्ञान और ज्ञानी को लेकर उठे मेरे मन की जिज्ञासा मेरे गुरुजी ने कुछ यही कहकर शांत की, परंतु अभी भी मेरे मन में जो शंका है वह यह कि जन हित और समाज हित का मापदंड क्या है ?
क्या किसी व्यक्ति मात्र के असंतुष्टि से हम यह अनुमान लगा लें कि सामने वाला व्यक्ति ज्ञान बाँटने में असफल है या हज़ारों की संतुष्टि उसकी सफलता है ? “निवेदिता”
Leave a comment