सर्दियों की आहट हुई , मेरे मन में भाव मचलने लगे देखा तो हल्की धुंध में किस तरह पेड़ों पर नन्हीं कोंपलों पर ओस की ठंडी बूँदें पड़ी हैं ,और पत्ते हिल रहे हैं मानो उन्हें ठण्ड से बचा रहे हों ,तभी सामने आंगन में दौड़ता नन्हा बालक और (उसकी माँ) और दादी भी भाग रहीं थी, “बेटा जैकेट पेहेन ले” पर जैसे नन्हे बालक को तो बस क्रीड़ा करने में आनंद की अनुभूति हो रही थी, सो वो कभी यहाँ भागता कभी वहां , अठखेलियों में गुलाचियां भर रहा था। मैं दूर से ही यह सब खेल देख-देख हर्षा रही थी। नन्हीं कोंपलों के समान ही बच्चा सुहानी सर्दियों के आगमन का स्वागत कर रहा है ,और दोनों की ही माताएं किस प्रकार अपनी नहीं पर बच्चों के लिए चिंतित हो रही हैं , इन्ही दोनों दृश्यों को मैंने अपनी भवनएँ इन कुछ पंक्तियों में व्यक्त की है।
मीठी महक भोर की इठलाई
अलसाई बेलों ने भी ली अंगड़ाई ,
खनक पत्तों की सुनी मैंने ,
कह रहीं थी लो अब ठंडी आई ,
ओढ़ लो बच्चों ओस लग जाएगी ,
माँ की बात सुन नन्ही कली मुस्काई ,
बोली झटपट, माँ क्या तूने ओढा है ?
तेरी कोमल स्पर्श से मैं गरमायी |
शांत था आँगन बातों में मगन,
तभि भागते लड़खड़ाते क़दमों की आहट आइ ,
दी खिलखिलाने की मधुर आवाज़ सुनाई ,
छोटा सा नन्हा बालक बाहर आया,
पीछे मुड़कर दादी को चिढ़ाया,
कभी भागता कभी गिर जाता ,
कभी भाग कर कौवे को उड़ाता,
गूंगी संग गूँगा बन खेले ,
कभी स्वरों को चिल्लाकर ठेले ,
अजब खेल गजब मेल
मैं दूर से देख रही थी ,
मुख की मुद्रआएं बदल रहीं थी ,
तभी , माँ नै आवाज़ लगायी,
पहन ले बेटा ठण्ड लगेगी,
वो छोटा है कह न पाया
माँ गोद में लेले,
ठण्ड का क्या है
भाग जाएगी ,
पहनके कपडे अनमनाया,
फिर मिनटों में ललचाया
मार किलकारी बाहर आया ,
और हर्षाया..
नन्ही कोमपल ; नन्हा बालक ,
दौनो बच्चों में कितना अंतर है,
एक पेड़ पर मौन लदें हैं,
दूजा इतराकर स्वचालित है
फिर भी माँ दौनो की चिंतित है ,
मेरे मन को दोनों भाये,
दृश्य अद्भुत दिखलाये
पत्तों की सनसनहट ,
बच्चे के खेल ,
देख रही थी मूक खड़ी मैं ,
बहते भावों में ठूंठ खड़ी मै ,
इतने में दिन चढ़ आया
शुरू हुई अब रेलम पेल ……”निवेदिता”
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