चाँद 

मुझे रंज है तुझसे ऐ चाँद , तू वहाँ तेरी ज्योत्सना को  अपनी आग़ोश में लिए बेठा है , 


यहाँ ज्योत्सना का चाँद ,कहीं काजल की स्याह में छुपा बैठा है , 


बादलों की झुर्मठ से झाँकता ,निकलता फिर छुप जाता , 


यूँ लुका छिप्पी खेलता दीख़ता है , बादलों के गोद में प्रेयसी के साथ खेलता है ,


मैं ना खेलूँ, तो भी उसे कहाँ फ़र्क़ पड़ता है , बस ऐसा कहकर दिल को ठंडक सा मिलता है ।        


 ” निवेदिता “

17 responses to “चाँद ”

  1. मुझे चाँद से रंज नहीं
    वो तो किराए की रोशनी पर इतराता है
    इसलिए मुझे सूरज ही भाता है

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    1. मैं ज्योत्सना चाँद की हूँ , मेरा तीज चाँद अन्नदाता है , सूरज तो अग्रज मेरे , उनके ऋण से ऊरिण होना – जैसे मातपिता का ऋण चुकाना है

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      1. हर कर्ज से मुझे मुक्त होना है
        मोक्ष ही मेरा सपना सलोना है ।

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    2. अजय जी आपके भावों को व्यक्त करने के लिए आपका आभार ।

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      1. अनेक धन्यवाद, स्वागत

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    1. Why don’t you write more , complimet or critcize anything write well .. वाणी में ना कंजूसी हो ना दरिद्रता । खुलके लिखो आगे से

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      1. hehe jitna bolunga, utni hi bewkoofi zahir krunga , wo kehte hain na :p, pagal chup bhi rahe to smjhdar lagta hai 😉

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        1. Bunny u r most intelligent

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  2. बेहद ख़ूबसूरत 🙂

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  3. Laga jaise khudra ke bare me hi bata rahe ho

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  4. Wow!!👌👏

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