ख़ामोश तुम ख़ामोश हम
झरनों की कल कल में सरगम
तान स्वरों की मधुरिमा की
निर्झर निर्मल प्रेम संगम ।

बरसे मेघों की सुरमयी रिमझिम
गाये मल्हार कोकिल स्वर पंचम
प्रथम प्रहर नव सूर्य की किरणे
खेलें नन्ही अरुणिमा संग । …
मुंह खोले देखें इक टक
चाह स्वाति की चातक को हरदम
तारों की चुनरी में चम चम
चादर झीनी रंगी रंगरेज़ के रंग। …
नन्ही कोम्पल प्रस्फ़ुटित
ली अंगड़ाई तरुणाई चंचल
हो रहा इंद्रधुशीय रंगों का समागम
प्रफुल्लित हृदय देख दृश्य मनोरम। .…
” निवेदिता “
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