मेरे उन आंसुओं का कोई मोल तुझे इसलिए नहीं क्योंकि बोली मेरे आँखों की ही मालिक ने लगाई नहीं , ख्वाब झूठे दिखाए ख़ुशी कभी दिखाई ही नहीं…
ख्वाबों में जागना मेरी फितरत हो चली , तूँ उस अधूरे ख्वाब की उलझन है जिसे सुलझाना मेरी अड़चन हो चली ।।
हर रात सुबह तुझसे बात करूँगा कहकर सोना हर सुबह उन बातों से पलटना तेरी फितरत हो चली , फिर भी उन झूठे वादों की तामीर का इंतज़ार करना हद हो चली ,
और दिन रात बस तड़पते हुए रोना मेरी फितरत हो चली ।। ..
जानती हूँ पढ़कर भी अनदेखा करना तेरी फितरत है और उस बेदर्दी बेफिक्री का इत्मिनान से इंतज़ार करना मेरी फितरत हो चली ,.. निवेदिता
Leave a Reply